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01 January, 2017

गुज़रते लम्हे.

हर "दिन" अपने संग कुछ लेकर आता है
कभी कुछ  हमसे ले कर चले जाता है,

जो कभी टूटे जाये कोई ख़्वाब अपना,
तो अगला पल फिर नयी उम्मीदे ले अाता है,

किसी पल जो गम में भींग जाये आँखे,
तो अगला लम्हा यार के मानिद रुमाल थमाता है,

जो एक पल को ख़ुशी हो भी जाए जुदा तुमसे,
तो अगला पल मुस्कुरा के बाँहे फैलाता है,

कोई लम्हा ले आता हैै, मौसम ऐ हिज़्र
तो कोई दिन यहाँ, शाम ऐ वस्ल दे जाता है,

कोई दिन यहां वीरानियों के मेले दिखाता है
तो दिन का कोई लम्हा महफ़िल ऐ अहवाब सजाता है,

कोई लम्हा ठोकर देकर गिराता है ,
तो अगला लम्हा फिर से उठकर जीना सिखाता है,

यूँ ही लम्हे दर लम्हे, एक लम्हे में साल गुज़र जाता है,
तो आता लम्हा अपने संग एक नया साल ले आता है,

बस जीना होता है, हर लम्हे में ज़िन्दगी को यहाँ,
की रिवाज़ ऐ वक़्त है "शज़र"
जो बीता तो फिर वापस नही आता.!

©अंकित आर नेमा "शज़र"






21 October, 2016

लम्हे तन्हाई के..

जब से गया वो दुनिया छोड़कर
हर लम्हे मे तन्हाई हैं,

आंख बंद हुई तो उसके नज़ारे हैं
जो खुली तो अश्को की झील समाई हैं,

अब मेरी महफिलो मे जश्न की गूंज नही,
वीरानियो कि परछाईं हैं,

मुझे लिखना नही आता यारो
बस उसकी यादों ने आज हमसे कलम चलवायी है..!

© अंकित आर नेमा "शज़र".

09 August, 2016

मेरे शहर......


हरदम कुछ पाने की जुस्तजू है
के मुसलसल सफ़र किये जा रहा हूँ
अब भूल ना जाना ,तू मुझे कहीं
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ.

है सवालात बहुत तेरे बन्दों से
की जबाबों के खातिर एक अर्ज़ी दिए जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ

है कुछ, बड़े अजीज अहबाब मेरे हो न कोई तक़लीफ़ उन्हें
बस इतनी सी जिम्मेदारी दिए जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ

गम से भरे तो हैं कई पन्ने यहाँ
लिख कुछ तहरीरे ख़ुशी की भी
के इतनी इल्तज़ा किये जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ

देते रह यूँ ही सबो को बहाने तबस्सुम के
के चश्मेतार तो में लिये जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ.
© अंकित आर नेमा.

24 July, 2014

गीत गुनगुनाये थे...

आखिर कर गया वो भी दूर जाने की बाते
जिसने कभी खुद आकर हाथ मिलाये थे

दे गया आँखों को अश्को की सौगात
जिसने खुशिया देकर कभी पलक भिगाए थे

ये रातों की तन्हाइयाँ कैसे गुजरेंगी उसके बिन
जिसके संग महफिलो में कभी गीत गुनगुनाये थे.

03 May, 2014

एक दिन में कितने साल बीत गए

दिन बीते,
महीने बीते,
फिर एक दिन में कल कितने साल बीत गए..
 
कभी हार गए, कभी जीत गए,
ख़ुशी से कभी आँखे छलकी, गम में कभी हम भीग गए,
फिर एक दिन में कल कितने साल बीत गए,
 
कई यार रूठ गए,
कई साथ छूट गए,
कभी ख़्वाब टूट गए, फिर एक दिन में कल कितने साल बीत गए