हरदम कुछ पाने की जुस्तजू है
के मुसलसल सफ़र किये जा रहा हूँ
अब भूल ना जाना ,तू मुझे कहीं
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ.
के मुसलसल सफ़र किये जा रहा हूँ
अब भूल ना जाना ,तू मुझे कहीं
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ.
है सवालात बहुत तेरे बन्दों से
की जबाबों के खातिर एक अर्ज़ी दिए जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ
की जबाबों के खातिर एक अर्ज़ी दिए जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ
है कुछ, बड़े अजीज अहबाब मेरे हो न कोई तक़लीफ़ उन्हें
बस इतनी सी जिम्मेदारी दिए जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ
बस इतनी सी जिम्मेदारी दिए जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ
गम से भरे तो हैं कई पन्ने यहाँ
लिख कुछ तहरीरे ख़ुशी की भी
के इतनी इल्तज़ा किये जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ
लिख कुछ तहरीरे ख़ुशी की भी
के इतनी इल्तज़ा किये जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ
देते रह यूँ ही सबो को बहाने तबस्सुम के
के चश्मेतार तो में लिये जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ.
के चश्मेतार तो में लिये जा रहा हूँ
ऐ मेरे शहर, के फिर एक दफा तुझसे दूर जा रहा हूँ.
© अंकित आर नेमा.
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