i stopped copy and paste
then save the html/javascript. and view you blog.
when you try to do right click. a message will tell you that “Function disabled”
and if you want to change this words” Function Disabled”
find the next line in the code
var message="Function Disabled!";
and change Function Disabled! to what ever you want.
For disabling copy paste function:
Log in to Blogger, go to Layout -> Edit HTML
And mark the tick-box “Expand Widget Templates”
Now find this in the template:
And immediately BELOW/AFTER it, paste this code:
Click on Save Template and you are don
13 January, 2012
10 January, 2012
निभा कर देखे अब रफाकत
हर ताल्लुकात निभा कर देखा,
बस बेवफाई ही मयस्सर हुई है ...
चलो निभा कर देखे, अब रफाकत ..
के वफ़ा की खुशबु, बस इन्ही ताल्लुकातों में बची हैं .
बस बेवफाई ही मयस्सर हुई है ...
चलो निभा कर देखे, अब रफाकत ..
के वफ़ा की खुशबु, बस इन्ही ताल्लुकातों में बची हैं .
सफ़र ऐ मंजिल मे हूँ कहाँ????????
कतरा-कतरा कर,
हौसलों का ये समंदर भर रहा हूँ..
दुस्वारिया ओ अजार की गर्द को दरकिनार कर ,
ख्वाब देखने की आजमाइश कर रहा हूँ ..
कुछ धीरे ही सही ,
पर एक एक कदम कर,
आगे तो बढ़ रहा हूँ ..
सफ़र ऐ मंजिल मे हूँ कहाँ ??
ये तो नहीं मालूम ,
पर हर दिन गुजरी गाह से आगे बढ़ रहा हूँ .....
हौसलों का ये समंदर भर रहा हूँ..
दुस्वारिया ओ अजार की गर्द को दरकिनार कर ,
ख्वाब देखने की आजमाइश कर रहा हूँ ..
कुछ धीरे ही सही ,
पर एक एक कदम कर,
आगे तो बढ़ रहा हूँ ..
सफ़र ऐ मंजिल मे हूँ कहाँ ??
ये तो नहीं मालूम ,
पर हर दिन गुजरी गाह से आगे बढ़ रहा हूँ .....
05 January, 2012
ओ सुनो, ग़ज़ल लिखने वाले ...
ओ सुनो, ग़ज़ल लिखने वाले .......
जब स्याही कम हो जाये, तब तुम कलम हमारी ले जाना ..
जब अल्फाजो का दरख़्त सूखे, तो बहार मुझसे ले जाना ..
पसंद है, गजलों की बारिश मुझको,
जब साफ़ हो, आसमां तेरी गजलों का,
तब बारिश करने को, कुछ अब्र- ऐ- दर्द मुंझ से ले जाना "
जब स्याही कम हो जाये, तब तुम कलम हमारी ले जाना ..
जब अल्फाजो का दरख़्त सूखे, तो बहार मुझसे ले जाना ..
पसंद है, गजलों की बारिश मुझको,
जब साफ़ हो, आसमां तेरी गजलों का,
तब बारिश करने को, कुछ अब्र- ऐ- दर्द मुंझ से ले जाना "
04 January, 2012
ज़िन्दगी ये अपनी शज़र हो गई .........
ज़िन्दगी ये अपनी शज़र हो गई ,
रफाकात, रफाकात ना रही, के परिंदा हो गई .
जो आये मौसम बहार के, डालियाँ भर गई ,
आते ही मौसम ऐ पतझड़ , यार हुए यु गम के जैसे सहर हो गई ..
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