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04 January, 2012

ऐ यारों हमदर्दी क्यों.??

ना रोको,
मेरी चश्म से छलकते,
इस दरिया ऐ अश्क को,


ऐ  यारों हमदर्दी  क्यों.??


आखिर ये अंजाम है तो,
तुम्हारी ही बारिश ऐ सितम का..

किताब का वो इक पन्ना

किताब का वो इक पन्ना ,
भीगने की  हसरत लिए,
 आज फिर मेरी आँखों तले आया है,

अँधेरी रात मे, कराने दीदार अपना ,
यादो के चिराग भी साथ ले आया है,

कुछ इबारते शरारतों में भीगी,
के कुछ गम में डूबी , 
कहु के , सितम ढाने के सामान साथ ले आया है,


भीगते भीगते, बह न जाए तहरीर कही के,
साथ अपने वो छतरी  ले आया है..

यार भी मिले,

यार भी मिले, 
तो गुल ऐ खुर्शीद की तरह ...


जहाँ- जहाँ दिखा ख़ुशी का आफ़ताब,
वहां के हो लिए.

बुझा दिया है हमने,

ऐ सितमगर ज़माने,
 ना कर  इन "मुन्तजिर निगाहों" से मेरे जलने का इंतज़ार ...


अब मुस्कराहट की बारिश से, बुझा दिया है हमने,
"शोला ऐ गम"

ना करना कभी आजमाइश

ना करना कभी आजमाइश,
 मेरी गुजरी हयात के पन्नो को पलट कर पढने  की ,




हर लफ्ज़ दर्द की स्याही से लिखा है ,


तेरे अश्को से इबारते ऐ गम कही बह ना जाये