कतरा-कतरा कर,
हौसलों का ये समंदर भर रहा हूँ..
दुस्वारिया ओ अजार की गर्द को दरकिनार कर ,
ख्वाब देखने की आजमाइश कर रहा हूँ ..
कुछ धीरे ही सही ,
पर एक एक कदम कर,
आगे तो बढ़ रहा हूँ ..
सफ़र ऐ मंजिल मे हूँ कहाँ ??
ये तो नहीं मालूम ,
पर हर दिन गुजरी गाह से आगे बढ़ रहा हूँ .....
हौसलों का ये समंदर भर रहा हूँ..
दुस्वारिया ओ अजार की गर्द को दरकिनार कर ,
ख्वाब देखने की आजमाइश कर रहा हूँ ..
कुछ धीरे ही सही ,
पर एक एक कदम कर,
आगे तो बढ़ रहा हूँ ..
सफ़र ऐ मंजिल मे हूँ कहाँ ??
ये तो नहीं मालूम ,
पर हर दिन गुजरी गाह से आगे बढ़ रहा हूँ .....