ऐ ज़माने,
ना दे गम मुझको इतना,
के गम की बस्ती का ही बाशिंदा हूँ मैं,,
ना बिछा खार राहो पर,
उड़ना आता है मुझको,
के आसमान से टूट कर गिरा परिंदा हूँ मैं,,
सोच कर सितम करना ज़माने वालो मुझपे,
के तेरे ही बादशाह का बन्दा हु मैं,,
मेरी तन्हाई और ख़ामोशी पर,
खुश मत हो ज़माने, मरा नहीं,
के अभी जिंदा हूँ मैं
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