वो सपने देखना गुनाह था शायद,
के अब तक सजा पा रहा हूँ ,
बहुत तलब थी, महफ़िलों की,
अब तो बस वीरानो के शौक फरमा रहा हूँ
मेरा मुक़द्दर , हुआ बरहम (नाराज) मुझसे ,
के अब तक मना रहा हूँ,
टूटे ख्वाब, शीशे की सूरत चुभे कभी आँखों में,
के अब तक खून के कतरे बहा रहा हूँ ,
जिस्म पर गम,
गुबार ऐ रहगुजर (रास्ते की धूल ) की तरह हुआ काबिज़,
के अब तक हटा रहा हूँ,
आग ऐ दोजख(नरक की आग) सी हुई ज़िन्दगी मेरी,
के अब तक सजा पा रहा हूँ ,
बहुत तलब थी, महफ़िलों की,
अब तो बस वीरानो के शौक फरमा रहा हूँ
मेरा मुक़द्दर , हुआ बरहम (नाराज) मुझसे ,
के अब तक मना रहा हूँ,
टूटे ख्वाब, शीशे की सूरत चुभे कभी आँखों में,
के अब तक खून के कतरे बहा रहा हूँ ,
जिस्म पर गम,
गुबार ऐ रहगुजर (रास्ते की धूल ) की तरह हुआ काबिज़,
के अब तक हटा रहा हूँ,
आग ऐ दोजख(नरक की आग) सी हुई ज़िन्दगी मेरी,
के अब तो बस कुछ हसरतों का बहाना लिए जले जा रहा हूँ.....
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