क्या करे गेरों से गिला ,
हम तो अपनों के ही सताए हुए है,
क्या करे उम्मीद,
अब साहिल पर आने की, जब अपनों के ही डुबाये हुए है,
कैसे करे ऐतबार? के जमाना करेगा बावफाई,
जब अपनों से ही धोखा खाए हुए है,
हो जायेंगे जलकर राख,
पर ना कहेंगे, के अब बारिश कर,
जब अपनों के ही जलाये हुए है,
क्यों कहु? के पोंछ दो ये अश्क मेरे,
जब ये अपनों के ही तोहफे मे आये हुए है,
तन्हा कट ही जायेगा, ये सफ़र ज़िन्दगी का,
क्या मांगू अब साथ किसी का,
जब ये वीराने अपनों के ही सजाये हुए है,
.
हम तो अपनों के ही सताए हुए है,
क्या करे उम्मीद,
अब साहिल पर आने की, जब अपनों के ही डुबाये हुए है,
कैसे करे ऐतबार? के जमाना करेगा बावफाई,
जब अपनों से ही धोखा खाए हुए है,
हो जायेंगे जलकर राख,
पर ना कहेंगे, के अब बारिश कर,
जब अपनों के ही जलाये हुए है,
क्यों कहु? के पोंछ दो ये अश्क मेरे,
जब ये अपनों के ही तोहफे मे आये हुए है,
तन्हा कट ही जायेगा, ये सफ़र ज़िन्दगी का,
क्या मांगू अब साथ किसी का,
जब ये वीराने अपनों के ही सजाये हुए है,
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