हमने जो कभी हक की तरह माँगा ,
आपने फकीर समझ कर भगा दिया,
बस कुछ हसरते थी दोस्त, तुमने तो, मजाक समझकर,
हर एक हसरत का जनाजा उठा दिया ,
तेरे गुलशन से मैंने तो कुछ फूल मांगे थे,
तुमने तो पतझड़ की सूरत, मेरे अरमानो को ही मुरझा दिया
अश्क पोंछने को कहा था मैंने ,
तुमने ये क्या? मुझे और ही रुला दिया .
मेरी बात को, मेरी फुरक़त का अहसास समझ तुमने ,
मेरे अहसासों का मजाक उड़ा दिया..
नहीं थी चाहत, साथ देने की.
तो फिर क्यों हाथ थामा?
और यूँ ठुकरा दिया..
आपने फकीर समझ कर भगा दिया,
बस कुछ हसरते थी दोस्त, तुमने तो, मजाक समझकर,
हर एक हसरत का जनाजा उठा दिया ,
तेरे गुलशन से मैंने तो कुछ फूल मांगे थे,
तुमने तो पतझड़ की सूरत, मेरे अरमानो को ही मुरझा दिया
अश्क पोंछने को कहा था मैंने ,
तुमने ये क्या? मुझे और ही रुला दिया .
मेरी बात को, मेरी फुरक़त का अहसास समझ तुमने ,
मेरे अहसासों का मजाक उड़ा दिया..
नहीं थी चाहत, साथ देने की.
तो फिर क्यों हाथ थामा?
और यूँ ठुकरा दिया..
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