शायद मुझे ही हुनर ऐ रफाकत नहीं,हर दोस्त जुदा है, मुझसे,मुझे ही ताल्लुकातों की हिफाजत नहीं...अब राब्ते नहीं ,वो शरारते नहीं,दरमियाँ अह्बाबो के, बाकी वो चाहते नहीं..वफ़ा निभाने की अब बातें नहीं,बाकी अब बज़्म की राते नहीं,मयस्सर हो , मोहब्बत के बदले मोहब्बत ,के ऐसी कोई रवायते नहीं,अपनों की नवाज़िशे नहीं,जुस्तजू(चाहत) के जुल्म बंद हो यारों का,,मगर, शायद अब भी यारों को,सितम ढाने से अदावतें(नफरत)) नहीं...!!!
हुनर ऐ रफाकत=दोस्ती का हुनर
ताल्लुकातों= संबंधो
राब्ते=रिश्ते
अह्बाबो=दोस्तों
बज़्म=महफ़िल
मयस्सर=पाना/मिलना
रवायते=रस्मे
नवाज़िशे= प्यार/दया
जुस्तजू=चाहत
अदावतें= नफरत
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