बरसों पहले इक यार को जाते देखा था,
जमाने से,
आँख मेरी भर आयी थी,
लबों को चीरकर एक चींख बाहर आयी थी,
दिल ने बड़ी गहरी चोट खायी थी,
उस अपने को खोकर ताउम्र तड़पने की सजा मैंने पायी थी...
फिर आँखों ने देखे यूँ नज़ारे तो कई..
पर आज!
इक अनजान को रुखसत होते देख,
ना जाने क्यों ?
फिर आँख भर आई थी
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