उस शाम देखा था ,
एक आदमी को नशे में लहराते हुए ,
शाम भी बड़ी सुहानी थी ,
गुलाबी सर्दी में लिपटी हुई, उस आदमी की जवानी थी,
ज़माने की भीड़ में,
बेपरवाह, बेबाक उसकी चाल थी,
चेहरे पर थी, उदासी यूँ, जैसे हर धडकन बेहाल थी,
उसने मोहब्बत में हारकर पी ली थी,
गम ऐ दिल से हैरान होकर पी ली थी,
आँखे भरी थी उसकी, और आवाज़ में भी एक कराह थी,
चलते चलते चिल्लाता था,
"ऐ सितमगर औरत भूल जाऊंगा तुझे,
तेरी भी क्या औकात थी.....!!!"
फिर जो अगली शाम मिला वो मुझे,
वही अफसाना दोहराते तो, मैने एक बात जानी थी??
"जब्त हो चुकी पैमानों मे उसकी जिंदगानी थी"
"अब ये बदह्कशी बन चुकी उसकी रोज की कहानी थी"
सही मायनो मे उसने शराब नहीं पी थी,,
उसने तो बस दर्द ऐ दिल को मिटाने की दवा ली थी....