ठोंकर खा-खा कर गिरे है इतना!
के अब चलने के हुनर आये है,
जीत कर हारते थे कभी ,
अब हारकर जीतना सीख आये है,
समन्दर से प्यासा लौटे थे कभी ,
के अब आँखों में ही समन्दर भर लाये है,
जला कर देखे तो! दुशवारिया मुझे ,
के अब हम भी लिबास ऐ बारिश पहन कर आये है
16/09/2011 A.R.Nema.!!!
No comments:
Post a Comment