ज़िन्दगी के किसी लम्हे में यूँ कारनामा हो जाता है
राह पे भटकते मुसाफिर को,
यूँ ही किसी लम्हे आशियाना मिल जाता है
गर्दिश का दौर करता है
झुककर सजदा,
दुशवरिया खुद पर रोती है,
झूमकर आँखों में
ख़ुशी के पैमाने छलकते है ,
ओंठो पर मुस्कराहट अटखेलिया करती है
झूमता है दिल यारो!
जब हर जर्रे पर
खुदा की रहमत बरसती है,,
A.R.Nema 15/02/2011
No comments:
Post a Comment